हुं कईक छुं ए भ्रमणा छे
एनाथी दुःखो बमणा छे
बस हुं छुं एवी मात्रा छे
त्यां सर्व स्वीकार नी यात्रा छे
बस आनंद छे आनंद छे ज्यां
लेश मात्र संकलेश नहि
भव भ्रमनो नी यात्रा नो तो
सर्व स्वीकारनी संयम यात्रा,
सादी अनंत छे वीरे कहीं,
भव भ्रमणोनी यात्रा नो तो,
अंत छे अनंत नहीं...
हु केहतो नथी संसारे दुःख,
पण शाश्वत सुख नो अंश नहीं,
भव भ्रमणोनी यात्रा नो तो,
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