सर्वार्थसिद्ध विमानमां दैवी सुखोमांहे रह्या,
योगीपणे जे झळकतां तेंत्रीश सागर नीरवह्या,
त्यां पुण्यवंती आवी पळ जेणे कह्युं “प्रभु अवतरो”
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो १
दश चार स्वप्न सूचित प्रभु जग्या अयोध्या नगरमां,
चंदा पर चमके श्री नाभिकुलकर गृहगगनमां,
मरुदेवानंदन अम हृदयनी भूमि पर पगला करो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२
क्रोडो वरसना अंधकार तणुं थयुं ज्यां निर्गमन,
जेना प्रथम पगले खीली ऊठ्युं हतुं आखुं चमन,
राजा कहषभनी जीवननीति सृष्टिमांहे विस्तरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.३
चउमुष्टि सह चउसहस साथे जेमणे संयम चह्युं,
लखपूर्व वर्षे आयुशेषे ज्ञान मन : पर्यव थयुं,
ते दिन थकी तप दीर्घ मांडी प्रभु कहे ‘तप आदरो',
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो..४
भिक्षाभ्रमणनो योग पण भिक्षा ग्रहण नीपज्युं नहीं,
निरपेक्षभावे वैर्यधर निशदिन रहे छे निजमहीं,
धीरजतणी प्रतिमा खरे संतृप्तिनो महासागरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.५
मणि मोती माणेकने वळी कोइ रत्न केरा हारने,
कोइ निजसुता कोइ वल्लभा, नवि सूझता आहारने,
स्थितप्रज्ञने सुप्रसन्न वदने भऋण करे भिक्षाचरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.६
जेणे जगतने शीखवी आहारनी चर्चा बधी,
ने दाखवी'ती पाकनी विद्या, सुधा तेने नडी,
छे कर्मनो संदेश के ‘भवि ! कर्मबंध थकी डरो',
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.७
नहीं अन्न लाध्युं हाथमां जळबिंदु नहीं कंठे वह्युं,
मनमां थतुं के राजवीनुं पुण्य सघळुं क्यां गयुं ?
थयो प्रबळ पुरुषार्थी प्रभुनो एहवो तप आकरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो..८
कोइ वृषभने भोजनतणो प्रतिबंध उपजाव्या थकी,
त्यारे उपार्युं कर्म ते अंतिम भवे रह्युं त्राटकी,
फळ तेहनुं जोवा वृषभ लंछन रूपे थयो हाजरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.९
छे जीवनी एवी दशा ज्यां सफळता मळती नथी,
त्यां दीर्घकाळ लगे कदी पण धीरता टकती नथी,
लाध्युं न अन्न छतां तमे संपूर्ण वर्ष लगे फरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१०
श्रेयांसजी जुए स्वप्नमां स्थिरता दीयता मेरुने,
नृप श्रेष्ठी पण सुपनांतरे पेखे मुदा तस लाभने,
संकेतथी श्रेयांस शिर सोहे सुभग नव सेहरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.११
कोइ जन दीये श्रेयांसने तब इक्षरस घटशत भरी,
फरतां नगरमां ते दिने तपसी पधार्या गोचरी,
थयो चित्त वित्तने पात्रनो संयोग, रुडो अवसरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१२
कोइ पूर्वभवमां बदषभने श्रेयांस साथे रह्या हता,
बनी योगी संयमजीवनना योगो सहु साध्या हता,
प्रभुने नीरखतां जातिस्मरणे कहेः “प्रभुजी वापरो',
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१३
लब्धिबळे करग्रहण रस कीधो प्रभुए जे क्षणे,
अहोदाननी उद्घोषणादिक पंच दिव्यो पारणे,
जाणे अखिल सृष्टिमहीं प्रसर्यो खुशीनो वायरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१४
जे इक्षखंड थकी प्रभुनो वंश इक्वाकु रह्यो,
ते इक्षना रसने ऋषभदेवे सहजमां कर रह्यो,
जेणे निहाळ्युं द्रश्य आ बडभागी ते सहु नरवरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१५
श्रेयांसना सौभाग्यना जाणे उघडतां बारणां,
ने इक्षरसना बुंद बुंदे भाग्यना ओवारणां,
जेना थकी मारा प्रभुना दीर्घतपना पारणां,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१६
भरपूर साता आपनारा इक्षखंडने धन्य छे,
मुखनूर ने दीपावनारा इक्षखंडने धन्य छे,
थइ चूर पण आनंदतुं कहे, ‘पारणानो अवसरो',
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१७
कोइपाप केरा उदयथी एकेन्द्रीमां जइ चडया,
पण कंइक पुण्योदय थकी प्रभु हस्तमांहे जइ वस्या,
ने संचरी प्रभुदेहमां कहे, ‘भव थयो सार्थक खरो',
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१८
श्रेयांसना हस्ते रहेला, कुंभमांथी निसर्या,
वरसोपवासी ऋषभजीना करयुगलमां अवतर्या,
चिंता टळी भवभ्रमणनी, “प्रभु कर तणो छे आशरो’,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.१९
आम्रफळ मीठा मधुरा खजूरने वळी द्राक्ष पण,
‘को इक्षरस तोले नही’, जाणे समजतो वस्तुगण
सहु मिष्ट पण मनोमन कहे ‘तस भाग्यनी इर्षा करो',
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२०
अवसर्पिणीना सौ प्रथम तपने तपस्वीने नमुं,
अवसर्पिणी ना सौप्रथम सत्पात्रदान ! तने नमुं,
देजो अमोने पण प्रभुजी दानना शुभ अवसरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२१
फागण वदी आठम दिने मंडाण वरसीतप तणुं,
वैशाख सुद त्रीजने थयुं हतुं, हस्तिनापुरे पारणुं,
दिन चारसोनो वारसो चिहुं जगतमांहे विस्तरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२२
आगोतरुं कोइ आयोजन नहीं, ना अलाभ दीनता,
‘क्यारे मळे ?', 'क्यांथी मळे ?', एवुं कदी न अपेक्षता,
ने इक्षरस लेता न हर्षोल्लास अहो ! समतापरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२३
करुं अरज के प्रभु ! आपनी धीरज मने आवी मळे,
धारी सफळता ना मळे त्यां जीव क्यारे न बळे,
ते दिन थकी मुज जीवनमां सुखनो सूरज ऊगशे खरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२४
जब इष्टवस्तु ना मळे त्यारे स्मरणमां आवजो,
धैर्यधन खूटे यदा स्थिरता प्रभुजी आपजो,
कीधा विना तप कीधलो मानीश हुं प्रभु माहरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२५
ऋषभजीना पगले पगले कंइक साधक चालता,
वरसा लागे आराधकोना वृन्द जेने साधता,
वर्षी तपस्वी सर्वनी अनुमोदना हैये भरो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२६
क्यारे प्रभु ! आपे ग्रहेला जीवनने पामी शकुं,
क्यारे तमोए आदरेला तापथे चाली शकुं,
मुज सत्त्व गयुं अस्ताचल प्रभु ! उदय फरी तेहनो करो,
वरसोपवासी ऋषभजी मुज जीवनमांहे अवतरो.२७
गुण पामवा भिक्षक बनी भमतो अनादि काळथी,
गुण प्राप्ति क्यांये न थती अविरत तपस्या चालती,
गुण इक्षुरस वहोराववा श्रेयांस थइ आवो विभु,
मुज आतमानो दीर्घतप थाय पूर्णजेह थकी प्रभु !...२८
Varasopavasi Rushabji (Varshitap Stuti) Hindi Lyrics - Jain Stuti |
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