रोमे रोममां, सत्व जगाडे, तत्त्वोथी भर्या मारा गुरु....
पुदगल परनी, ममता मटाडे, समताथी सज्या मारा गुरु…
ओ मारा गुरु ओ मारा गुरु, तने जोइने हुं एक कहुं,
परमात्मा नुं रूप तुं...
ओमारा गुरु ओ मारा गुरु, अंतरथी आजे एक कहूं,
परमात्मा नुं रूप तुं...
दूर करे जे अंधापो, एवो तुं छे एक दीवो,
आत्माने झळहळावे छे तुं...
गुरुवर प्रेमनो प्यालो, पले पले मारे पीवो,
प्यास मारी छिपावे छे तुं...
मारा दुःख टळे ने सुख मळे, तारा चरणे सर्वस्व मळे,
नाम तारुं जीवनने उजाळे
अमावस ने जे करे पूनम, छे एवं अजब स्वरूप तुं,
ओ मारा गुरु...
आ तन थी मारो, आतम छे आ अलगो,
समजाव्युं छे ते मने,
शुं कहुं हुं तारी माया, विसराई मारी काया,
जीवन समर्प्य में तने....
आहार नी संज्ञा तोडी, मारा कर्मोंने तोडाव्या ते,
शरणे तुं मुजने राखजे....
मारा थी गुरु जे कई थयुं, ते शक्ति नो छे स्त्रोत तुं.
परमात्मा नुं रूप तुं...
ओ मारा गुरु...
गुरुवर... ओ गुरुवर...
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