Mallinath Jag Nath (Hindi Lyrics) Jain Stavan | Devchandraji Chovisi





मल्लिनाथ जगनाथ, चरणयुग ठाईए रे,
शुद्धातम प्रागुभाव, परम पद पाईए रे,
साधक कारक षट्क, करे गुण साधना रे,
तेहि ज शुद्ध स्वरूप, थाये निराबाधना रे...१

 कर्ता आतमद्रव्य, कारज निज सिद्धता रे,
उपादान परिणाम, प्रयुक्त ते करणता रे;
आतम संपद् दान, तेह संप्रदानता रे,
दाता पात्र ने देय, त्रिभाव अभेदता रे...२

स्वपर विवेचन करण, तेह अपादानथी रे,
सकल पर्याय आघार, संबंघ आस्थानथी रे;
बाघक कारक भाव, अनादि निवारवा रे,
साघकता अवलंबी, तेह समारवा रे...३

शुद्धपणे पर्याय, प्रवर्तन कार्यमें रे,
कर्नादिक परिणाम, ते आतम घर्ममें रे
चेतन चेतन भाव, करे समवेतमें रे,
सादि अनंतो काल, रहे निज खेतमें रे...४

पर कर्तृत्व स्वभाव, करे तांलगी करे रे,
शुद्धकार्य रुचि भास, थये नवि आदरे रे;
शुद्धातम निज कार्य, रुचे कारक फिरे रे,
तेहि ज मूल स्वभाव, रहे निज पद वरे रे...५

ग्रह कारण कारजरूप, अछे कारक दशा रे,
वस्तु प्रगट पर्याय, एह मनमें वस्या रे,
पण शुद्ध स्वरूप ध्यान, ते चेतनता ग्रहे रे,
तव निज साघक भाव, सकल कारक लहे रे...६

माहरुं पूर्णानंद, प्रगट करवा भणी रे,
पुष्टालंबन रूप, सेव प्रभुजी तणी रे;
देवचंद्र जिनचंद्र, भक्ति मनमें घरो रे,
अव्याबाघ अनंत, अक्षय पद आदरो रे...७

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