भव जल पार उतार, भव जल पार उतार,
श्री शंखेश्वर पाश्व जिनेश्वर मारो तु एक आधार…
काल अनंतो भमता भमता क्याय न आवयो आरो,
धन्य घड़ी ते मारी आजे, दीठो तुम देदारो…
तु वीतरागी, तु अविनाशी,अविनाशी, तु निराबाधी देव,
हुं रागी छु, पापी जीवड़ो, भमतो भव अपार…
आ दुनिया मा तारा जेवा, कोई न तारणहारा,
वामानंदन चंदन नी परे, शीतल जेनी छाय…
भवोभव तुम चरण सेवा, मांगु छु दीनदयाला,
रंगविजय कहे प्रेमशुं रे, विनंती ए अवधार..
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