रचना: पु. मु. श्री राजसुंदरविजयजी म. सा. (डी. लिट्.)
तर्ज: (औलिया)
देव भलेने मोटो छे पण देवोनो तुं देव,
देवाधिदेव... गुरुदेव…
दिवाकर दिलनो छे तुं, निशाकर नयननो छे तुं..(२)
तुं तो केवो मजानो मळ्यो, खुशीनो तो खजानो मळ्यो,
{तने ना छोडूं, नातो ना तोडुं..(२)
करुं भवोभव तारा चरणोनी सेव...}..(२)
गुरुदेव... गुरुदेव... गुरुदेव... गुरुदेव…
प्यारा गुरुदेव ! तारी साथे, आजे हुं झगडो करुं छु,
आ रीते पण तारा प्रत्येना, मारा प्रेमने तगडो करूं छु,
तारा प्रेममा पागल बनी मने जीववानी टेव..(२)
(मारो प्रीतम तुं, मारो व्हालम तुं..(२)
मोक्षे जाशुं साथे आपणे बेव...}..(२)
गुरुदेव... गुरुदेव... गुरुदेव... गुरुदेव...
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