रचयिता : "योगकांक्षी"
(तर्ज-मन भरेया)
चाली गया ए निजी दुनियामां
ना ए पाछु जोवाना
सरवर खुशियोनुं छलकावी जगमां,
ए धीमा पगले…
मनमां सहुनी यादो, पळवार भुलाशे नहीं,
एना विना थयो जे, हवे सूनकार पुराशे नहीं,
संयममा प्रोइ, पोतानुं दिल,
लीन थइ जाशे गुरुचरणोमां,
के ना पाछु जोवाना,
सरवर खुशियोनुं छलकावी जगमां,
ए धीमा पगले…
संग एनो छुटवानो, रंग एनो रहेवानो,
भंग दिलमां पडवानो, आतमा अकळावानो,
पण ऐना जीवनथी, आलंबन मळवानु,
सहुने भवजंगलमां, मजा- शंबल मळवार्नु,
संयममा प्रोइ…
भोगनो कादव छोडी, 'योग' मां दिलद्दु जोडी,
जाय अमने तरछोडी, चित्तने पळमां मोडी,
“कांक्षा” दिलमां रमती, भव सफळ करुं मोंघो,
हाथे ना आवे तो, हवे दिलमां आवे ओघो,
संयममां प्रोइ...
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