आपो प्रभुजी मने आपो तारो पंथ,
राजुल हु तारी मने आपो तारो संग...(२)
आठ भवनी ए प्रीत त्यजी, नेमि चाल्या रे राजुल छोड़ी,
मन माहे ज रे नाथ मान्या तने, नवमां भवे छोड़ी चाल्या तमे,
आपो प्रभुजी मने आपो तारो पंथ,
राजुल हु तारी मने आपो तारो संग...
धन्य गिरनार चाल्या राजुल छोड़ी, पाम्या विरती नी प्रीति अखंड अही...(२)
रंगीला ए रंग वैराग्य ना रे, पेहेरीए मुक्ति माल नेमि प्रीतम जोड़े,
रोम रोम मां रे नेमि तारो ज नाद, हवे पामी तने प्रीत अमर करी,
राजुल हु तारी मने आपो तारो संग...
झंखू मुक्ति ने मने आपो संयम, मांगू ए वेश तमारो परम...(२)
दौड़ी-दौड़ी जाऊ नेम राजुल पंथे, चाहू मेळववा प्रभु पंचम पदे,
सर्वांशे बनु प्रभु तारो ज अंश, आपो मने आपो वीर नो ए वंश,
आपो प्रभुजी मने आपो तारो पंथ,
राजुल हु तारी मने आपो तारो संग...
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