तर्ज: (प्रभु आवशे ने लई जाशे)
हे गिरनार ना नेमी निरंजन,
मुक्त थवा झंखे मुज आतम,
हुं चाहु...बस चाहु... नेम आवशे ने संयम आपशे…
निर्विकारी हितकारी सत्त्वधारी, ब्रह्मचारी नेम सलुणा,
पशुओं माटे तोडी प्रीति राजीमति थी, केवी अन्हद तारी करूणा,
रागी थी वैरागी थवा, तारा सम वितरागी थवा,
क्यारे आवशे पावन क्षण, तुज हाथे थी मळे रजोहरण...
हुं चाहु...बस चाहु... नेम आवशे ने संयम आपशे…
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