Chandraprabh Mukh Chand Sakhi (Hindi Lyrics) Jain Stavan | Shree Aanandghanji Stavan



चन्द्रप्रभ मुखचन्द सखी मुनै देखण दे, उपसम रस नो कंद । सखी । 

सेवै सुरनर इन्द, सखी, मत कलिमल दुख दंद ॥ सखी ॥१॥


सुहम निगोदे न देखियो, सखी, बादर अतिही बिसेस । सखी । 

पुढवी आऊ न लेखियो, सखी, तेऊ वाऊ न लेस ॥ सखी ॥२॥


वनसपती अति घण दिहा, सखी, दीठो नहीं दीदार । सखी० । 

बि ती चौरिदी जल लीहा, सखी, गति सन्नी पण धार ॥ सखी ॥३॥


सुर तिरि निरय निवास मां, सखी, मनुज अनारज साथ । 

अपज्जता प्रतिभास यां, सखी, चतुर न चढियो हाथ ॥ सखी ॥४॥


इम अनेक थल जाणिये, सखी, दरसण विन जिनदेव । सखी । 

आगम थी मति आणिये, सखी, कीजे निरमल सेव ॥ सखी ॥५॥


निरमल साधु भगति लही, सखी, जोग अवंचक होय।। 

किरिया अवंचक तिम सही, सखी, फल अवंचक जोय ॥ सखी ॥६॥


प्रेरक अवसर जिनवर, सखी, मोहनीय खय थाय । सखी । 

कामित पूरण सुरतरु, सखी, 'आनन्दधन' प्रभु पाय ॥ सखी ॥७॥

Chandraprabh Mukh Chand Sakhi (Hindi Lyrics) Jain Stavan  | Shree Aanandghanji Stavan
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