चन्द्रप्रभ मुखचन्द सखी मुनै देखण दे, उपसम रस नो कंद । सखी ।
सेवै सुरनर इन्द, सखी, मत कलिमल दुख दंद ॥ सखी ॥१॥
सुहम निगोदे न देखियो, सखी, बादर अतिही बिसेस । सखी ।
पुढवी आऊ न लेखियो, सखी, तेऊ वाऊ न लेस ॥ सखी ॥२॥
वनसपती अति घण दिहा, सखी, दीठो नहीं दीदार । सखी० ।
बि ती चौरिदी जल लीहा, सखी, गति सन्नी पण धार ॥ सखी ॥३॥
सुर तिरि निरय निवास मां, सखी, मनुज अनारज साथ ।
अपज्जता प्रतिभास यां, सखी, चतुर न चढियो हाथ ॥ सखी ॥४॥
इम अनेक थल जाणिये, सखी, दरसण विन जिनदेव । सखी ।
आगम थी मति आणिये, सखी, कीजे निरमल सेव ॥ सखी ॥५॥
निरमल साधु भगति लही, सखी, जोग अवंचक होय।।
किरिया अवंचक तिम सही, सखी, फल अवंचक जोय ॥ सखी ॥६॥
प्रेरक अवसर जिनवर, सखी, मोहनीय खय थाय । सखी ।
कामित पूरण सुरतरु, सखी, 'आनन्दधन' प्रभु पाय ॥ सखी ॥७॥
Chandraprabh Mukh Chand Sakhi (Hindi Lyrics) Jain Stavan | Shree Aanandghanji Stavan |
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