ध्रुवपद रामि हो स्वामी माहरा
निष्कामी गुणराय सुज्ञानी निष्कामी गुणराय
निज गुण कामी हो पामी तुं धणी-2
ध्रुव आरामी हो थाय , सुज्ञानी
निष्कामी गुणराय सुज्ञानी निष्कामी गुणराय
सर्व व्यापी कहे सर्व जाणगपणे, पर परिणमन स्वरूप ,-2सुज्ञानी
पररूपे करी तत्त्वपणू नहीं', स्वसत्ता चिदरूप ,-2 सुज्ञानी
धेय अनेके हो ज्ञान अनेकता, जळ भाजन रवि जेम , सुज्ञानी
द्रव्य एकत्वपणे गुण एकता, निज पद्ध रमता हो खेम , सुज्ञानी
परक्षेत्रे गत नेय ने जाणवी , परक्षेत्रे थयूं ज्ञान , सुज्ञानी
अस्तिपणो निज क्षेत्रे तुमेकजु ,निर्मलता गुण मान , सुज्ञानी
धेयविनाशे हो ज्ञान विनश्वरू, काळ प्रमाणे रे थाय , सुज्ञानी
स्वकाळे करी स्वसत्ता सदा, ते पर रीते न जाय , सुज्ञानी
परभावे करी परता पामतां, स्वसत्ता थिर टाण , सुज्ञानी
आत्मचतुष्ट मई परमां नहीं', तो किम सहुना रे जाण , सुज्ञानी
अगुरुलघु निज गुणने देखतां, द्रव्य सकल देखंत , सुज्ञानी
साधारिण गुणनी साधर्मता, दर्पण जलने दृष्टांत , सुज्ञानी
श्री पारस जिन पारसरस समो पण इहा पारस* नांहि , सुज्ञानी
पूरण रसीओ हो निज गुण परसनो, आनंदघन मुज मांहि , सुज्ञानी
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