Munisuvrat Jinraj (Hindi Lyrics) Jain Stavan | Anandghan Chovisi

मुनिसुव्रत जिनराज एक मुझ विनती निसुणो ॥

आतम तत क्यू जाणू जगतगुरु, एह विचार मुझ कहिये। 
आतम तत जाप्या विण निरमल, चित समाधि नवि लहिये ॥ मुनिसुव्रत... ॥१॥

कोई अबंध आतम तत मान, किरिया करतो दीसै।
क्रिया तणो फल कोण भोगवै, इम पूछयां चित रीसे ॥ मुनिसुव्रत... ॥२॥


जड़ चेतन ए आतम एकज, थावर जंगम सरिखो। 
सुख दुख संकर दुध ण आवै, चित विचार जो परिखो ॥ मुनिसुव्रत... ॥३॥

एक कहै नित्यज आतम तत, आतम दरसण लीनो। 
कृत विनास अकृतागम दूषण, नवि देखै अति हीनो ॥ मुनिसुव्रत... ॥४॥

सुगत मत रागी कहै वादी, क्षणिक ए आतम जाणो । 
बंध मोख सुख दुख नवि घटै, एह विचार मन जागो ॥ मुनिसुव्रत... ॥५॥

भूत चतुष्क बरजी, आतम तत, सत्ता अलगी न घटै। 
अन्ध सकट जो नजर न देखै, तो स्यू कीजै सकटै ॥ मुनिसुव्रत... ॥६॥ 

इम अनेक वादी मत विभ्रम, संकट पडियो न लहै । 
चित समाधि ते माटे पूछौं, तुम बिण तत कोण कहै ॥ मुनिसुव्रत... ॥७॥

बलतूं जगगुरु इण परि भाखै, पक्षपात सहु छंडी। 
राग-द्वष मोहे पख वरजित, आतम सू रढ मंडी।मुनिसुव्रत...॥८॥

आतम ध्यान करे जो कोऊ, सो फिर इण में नावै। 
वागजाल बोजौ सहु जाणे, एह तत्व चित चावै ॥ मुनिसुव्रत...॥९॥

जे विवेक धरि ए पख ग्रहियो, ते ततज्ञानी कहिये ।
श्री मुनिसुव्रत कृपा करो तो, 'आनन्दघन' पद लहियै ॥ मुनिसुव्रत... ॥१०॥
Munisuvrat Jinraj (Hindi Lyrics) Jain Stavan | Shree Aanandghanji Stavan
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