स्वस्ति श्री महाविदेह क्षेत्रमा
जिहा राजे तिर्थंकर विश , तेने नमुं शीश,
कागल लखुं कोडथी
स्वामी जघन्य तिर्थंकर वीश छे ,
उत्कृष्ठ एकसो ने सित्तेर , तेमा नहीं फेर
कागल लखुं कोडथी
स्वामी बार गुणे करी युक्त छे
अंगे लक्षण एक हज़ार , ऊपर आठ सार,
कागल लखुं कोडथी
स्वामी चोत्रिश अतिशय शोभता
वाणी पांत्रीस वचन रसाल , गुणों तणी माल,
कागल लखुं कोडथी
स्वामी गंध हस्ती सम गाजता,
त्रण लोक तणा प्रतिपाल , छो दिन दयाल
कागल लखुं कोडथी
स्वामी काया सुकोमल शोभती
शोभे सुवर्ण सोवन वान , करू हूं प्रणाम
कागल लखुं कोडथी
स्वामी गुण अनंता छे ताहरा
एक जीभे कहया केम जाय , लख्या न लखाय
कागल लखुं कोडथी
भरत क्षेत्रथी लिखितंग जाणजो
आप दर्शन इछुक दास , राखु तुम आश
कागल लखुं कोडथी
में तो पूर्वे पाप किधा घणा
जेथी आप दर्शन रहया दूर , न पहोंचु हज़ूर
कागल लखुं कोडथी
मारा मनना संदेह अति घणा
आप विना कहया केम जाय , अंतर अकलाय
कागल लखुं कोडथी
आड़ा पहाड़ पर्वत ने डूंगरा
तेथी नज़र नाखी नव जाय , दर्शन केम थाय,
कागल लखुं कोडथी
स्वामी कागल पण पहोंचे नहीं
नवी पहोंचे संदेशों साई , हु तो रहयो आहि
कागल लखुं कोडथी
देवे पांख दीधी होत पीठमां
उड़ी आवु देशावर दूर , तो पहोंचु हज़ूर
कागल लखुं कोडथी
स्वामी केवलज्ञाने करी देखजो
मारा आतमना छो आधार , उतारो भवपार,
कागल लखुं कोडथी
ओछु अधिकु ने विपरीत जे लखयु
माफ करजो जरूर जिनराज , लागू छु तुम पाय
कागल लखुं कोडथी
संवत 1853 नी सालमा
हरखे हर्षविजय गुणगाय , प्रेमे प्रणमु पाय
कागल लखुं कोडथी
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