दोहाः (राग - कबीर के दोहे)
श्री शुभविजय सुगुरु नमी, नमी पद्मावती माय,
भव सत्तावीश वर्णवं, सुणतां समकित थाय... ॥१॥
समकित पामे जीवने, भव गणतीय गणाय,
जो वळी संसारे भमे, तो पण मुगते जाय... ॥२॥
वीर जिनेश्वर साहिबो, भमीयो काल अनंत,
पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत... ॥३॥
॥ ढाल पहली ॥
(राग - मायन मायन)
पहले भवे एक गामनो रे, राय नामे नयसार,
काष्ट लेवा अटवी गयो रे, भोजन वेला थाय रे,
प्राणी धरीये समकित रंग, जिम पामीये सुख अभंग रे...प्राणी... ॥१॥
मन चिंते महिमा नीलो रे, आवे तपसी कोय,
दान देइ भोजन करूं रे, तो वांछित फल होय रे...प्राणी... ॥२॥
मारग देखी मुनिवरा रे, वंदे देइ उपयोग,
पूछे केम भटको इहां रे, मुनि कहे सार्थ वियोग रे...प्राणी... ॥३॥
हरखभेर तेडी गयो रे, पडिलाभ्या मुनिराज,
भोजन करी कहे चालीए रे, सार्थ भेला करूं आज रे...प्राणी... ॥४॥
पगवटीए भेला कर्या रे, कहे मुनि द्रव्य ए मार्ग,
संसारे भूला भमो रे, भाव मार्ग अपवर्ग रे...प्राणी... ॥५॥
देव गुरु ओलखावीया रे, दीधो विधि नवकार,
पश्चिम महाविदेहमां रे, पाम्या समकित सार रे...प्राणी... ॥६॥
शुभ ध्याने मरी सुर हुओ रे, पहले स्वर्ग मोझार,
पल्योपम आयु चवी रे, भरत घरे अवतार रे...प्राणी... ॥७॥
नामे मरीची यौवने रे, संयम लीये प्रभु पास,
दुष्कर चरण लही थयो रे, त्रिदंडीक शुभ वास रे...प्राणी... ॥८॥
|| ढाल दूसरी ॥
(राग - हे मेरे वतन के लोगो)
नवो वेश रचे तेणी वेला, विचरे आदिश्वर भेला,
जळ थोडे स्नान विशेषे, पग पावडी भगवे वेशे... ॥१॥
धरे त्रिदंड लाकडी म्होटी, शिर मुडंण ने धरे चोटी,
वली छत्र विलेपन अंगे, थूलथी व्रत धरतो रंगे... ॥२॥
सोनानी जनोई राखे, सहुने मुनि मारग भाखे,
समोसरणे पूछे नरेश, कोइ आगे होशे जिनेश... ॥३॥
जिन जंपे भरतने ताम, तुज पुत्र मरीची नाम,
वीर नामे थशे जिन छेल्ला, आ भरते वासुदेव पहेला...॥४॥
चक्रवर्ती विदेहे थाशे, सुणी आव्या भरत उल्लासे,
मरीचि ने प्रदक्षिणा देता, नमी वंदीने एम कहेता...॥५॥
तमे पुन्याइवंत गवाशो, हरि चक्री चरम जिन थाशो,
नवि वंदु त्रिदंडिक वेश, नमुं भक्तिए वीर जिनेश...॥६॥
एम स्तवना करी घर जावे, मरीचि मन हर्ष न मावे,
म्हारे त्रण पदवी नी छाप, दादा जिन चक्री बाप...॥७॥
अमें वासुदेव धुर थइशुं, कुल उत्तम म्हारूं कहीशुं,
नाचे कुळ मदशु भराणो, नीच गोत्र तिहां बंधाणो... ॥८॥
एक दिन तनु रोगे व्यापे, कोई साधु पानी न आपे,
त्यारे वंछे चेलो एक, तव मलियो कपिल अविवेक... ॥९॥
देशना सुणी दीक्षावासे कहे मरीची लीयो प्रभु पासे,
राजपुत्र कहे तुम पासे, लेशु अमें दीक्षा उल्लासे... ॥१०॥
तुम दरशने धरमनो व्हेम, सुणी चिंते मरीची एम,
मुज योग्य मल्यो ए चेलो, मूल कडवे कडवो वेलो... ॥११॥
मरीची कहे धर्म उभयमां, लीए दीक्षा यौवन वयमां,
एणे वचणे वध्यो संसार, ए त्रीजो कह्यो अवतार...॥१२॥
लाख चौराशी पूरव आय, पाली पंचमे स्वर्ग सधाय,
दश सागर जीवित त्यांही, शुभवीर सदा सुखमाही... ॥१३॥
|| ढाल तीसरी ॥
(राग - रघुपती राघव राजा राम)
पांचवे भव कोल्लाग सनिवेश, कौशिक नामें ब्राह्मण वेश,
एंशी लाख पूरव अनुसरी, त्रिदंडियाने वेशे मरी...॥१॥
काल बहु भमियो संसार, थुणापुरी छठ्ठो अवतार,
बहोतेर लाख पूरवनु आय, विप्र त्रिदंडिक वेष धराय...॥२॥
सौधर्म मध्य स्थितिए थयो, आठमे चैत्य सन्निवेशे गयो,
अग्निभूति द्विज त्रिदंडिक, पूर्व आयुलाख साठे मुओ... ॥३॥
मध्यस्थितिए सुर स्वर्ग इशान, दशमे मंदिर पुरद्विजठाण,
लाख छप्पन्न पूरवायु धरी, अग्निभूति त्रिदंडीक मरी...॥४॥
त्रीजे स्वर्गे मध्यायु धरी, बारमे भवे श्वेताम्बीपुरी,
पुरवलाख चुम्मालीश आय, भारद्वीज त्रिदंडिक थाय... ॥५॥
तेरमे चोथे स्वर्गे रमी, काल घणो संसारे भमी,
चौदमे भव राजगृही जाय, चोत्रीस लाख पूरवने आय... ॥६॥
थावर विप्र त्रिदंडी थयो, पांचमे स्वर्गे मरीने गयो,
सोलमे भवे क्रोड वर्षनुं आय, राजकुमार विश्वभूति थाय... ॥७॥
संभूति मुनि पासे अणगार, दुष्कर तप करी वरस हजार,
मासखमण पारणे धरी दया, मथुरामां गोचरीए गया... ॥८॥
गाय हण्या मुनि पडिया वशा, विशाखानंदी पितरीया हस्या,
गोशृंगे मुनि गर्वे करी, गयण उछाली धरती धरी...॥९॥
तप बलथी होजो बल धणी, करी नियाणु मुनि अणसणी,
सत्तरमे महाशुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सागर सत्तरा... ॥१०॥
॥ ढाल चौथी ॥
(राग - क्या खूब लगती हो / आगे के तीन आंखडी मारी प्रभु)
अढारमे भवे सात, सुपन सूचित सती,
पोतन पुरीए प्रजापति, रानी मृगावती,
तस सुत नामे त्रिपृष्ठ, वासुदेव निपन्या,
पाप घणुं करी, सातमी नरके उपन्या... ॥१॥
वीशमे भव थई सिंह, चौथी नरके गया,
तिहांथी चवी संसारे, भव बहुला थया,
बावीशमे नरभव लही, पुण्यदशा वर्या,
तेवीशमे राजधानी, मूकामे संचर्या... ॥२॥
राय धनंजय धारिणी, राणीए जनमीया,
लाख चोराशी पूर्व आयु जीवियां,
प्रियमित्र नामे चक्रवर्ती, दीक्षा लही,
कोडी वरस चारित्र दशा पाली सही... ॥३॥
महाशुक्रे थई देव, इणे भरते चवि,
छत्रिका नगरीए, जितशत्रु राजवी,
भद्रा माय लख पचवीश, वरस स्थिति धरी,
नंदन नामे पुत्रे दीक्षा आचरी...॥४॥
अगीयार लाख ने एंशी, हजार छस्से वली,
उपर पीस्तालीश, अधिक पण मन रूली,
वीशस्थानक मासखमणे, जावज्जीव साधता,
तीर्थंकर नामकर्म, तिहां निकाचता... ||५||
लाख वरस दीक्षा, पर्याय ते पालता,
छव्वीसमे भवे प्राणत कल्पे देवता,
सागर वीशनुं जीवित सुखभर भोगवें,
श्री शुभवीर जिनेश्वर भव सुणजो हवे... ॥६॥
|| ढाल पांचमी ||
(राग - झनन झनन झणकारो रे)
नयर माहणकुडमां वसेरे, महात्रद्धि ऋषभदत्त नाम,
देवानंदा द्विज श्राविका रे, पेट लीधो प्रभु विसराम रे, पेट लीधो... ॥१॥
ब्याशी दिवसने आंतरे रे, सुर हरणीगमेषी आय,
सिद्धारथ राजा घरे रे, त्रिशला कूखे छटकाय रे, त्रिशला...॥२॥
नव मासांतरे जनमीया रे, देव देवीए ओच्छव कीध,
परणी यशोदा यौवने रे, नामे महावीर प्रसिद्ध रे, नामे...॥३॥
संसार लीला भोगवी रे, त्रीस वर्षे दीक्षा लीध,
बार वर्षे हुआ केवली रे, शिववहुनुं तिलक सिर दीध रे, शिववहुनु...॥४॥
संघ चतुर्विध थापियो रे, देवानंदा ऋषभदत्त प्यार,
संयम देई शिव मोकल्या रे, भगवती सूत्रे अधिकार रे, भगवती... ॥५॥
चोत्रिस अतिशय शोभता रे, साथे चउद सहस अणगार,
छत्रीस सहस ते साधवी रे, बीजो देव देवी परिवार रे, बीजो... ॥६॥
त्रीस वरस प्रभु केवली रे, गाम नगर ते पावन कीध,
बहोंतेर वरस आउखुं रे, दीवालीए शिवपद लीध रे, दीवालीये... ॥७॥
अगुरुलघु अवगाहने रे, कीयो सादि अनंत निवास,
मोहराय मल्ल मुलशुं रे, तन मन सुखनो होय नाश रे, तन मन... ॥८॥
तुम सुख एक प्रदेश नुं रे, नवि मावे लोकाकाश,
तो अमने सुखीआ करो रे, अमे धरीए तुमारी आश रे, अमे... ॥९॥
अखय खजानो नाथनो रे, मे दीठो गुरु उपदेश,
लालच लागी साहेबा रे, नवि भजीये कुमतिनो लेश रे, नवि भजीये... ॥१०॥
म्होटानो जे आशरो रे, तेथी पामीये लील विलास,
द्रव्य भाव शत्रु हणी रे, शुभवीर सदा सुख वास रे, शुभ वीर... ॥११॥
कलश
ओगणीश एके, वरस छेके, पूर्णिमा श्रावण वरो,
में थुण्यो लायक विश्वनायक, वर्द्धमान जिनेश्वरो,
संवेग रंग तरंग झीले, जसविजय समता धरो,
शुभविजय पंडित चरण सेवक, वीरविजय जयकरो ॥
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