अमृतवेल (Hindi Lyrics) जैन सज्झाय


चेतन ! ज्ञान अजुवाळीये, टाळीचे मोह संताप रे; 
चित्त डमडोलतुं वाळीए, पाळीए सहज गुण आप रे. १ 
उपशम अमृतरस पीजीए, कीजीए साधु गुण गान रे; 
अधम वचणे नवि खीजीए, दीजीए सज्जनने मान रे. २ 
क्रोध अनुबंध नवि राखीए, भाखीए वचण मुख साच रे; 
समकित रत्नरूचि जोडीए, छोडीए कुमति मति काच रे. ३ 


शुद्ध परिणामने कारणे, चारनां शरण धरे चित्त रे; 
प्रथम तिहां शरण अरिहंतनुं जेह जगदीश जग मित्त रे. ४ 
जे समवसरणमां राजतां, भांजता भविक संदेह रे; 
धर्मना वचन वरसे सदा, पुष्परावर्त जिम मेह रे. ५ 
शरण बीजुं भजे सिद्धनुं, जे करे कर्म चकचूर रे; 
भोगवे राज शिव नगरनुं ज्ञान आनंद भरपूर रे. ६ 
साधुनुं शरण त्रीजुं धरे, जेह साधे शिव पंच रे; 
मूळ उत्तर गुणे जे वर्या, भव तर्या भाव निग्रंथ रे. ७ 
शरण चोथुं धरे धर्मनुं, जेहमां वर दयाभाव रे; 
जेह सुख हेतु जिनवर कह्यो, पाप जल तरवा नाव रे. ८ 
चारनां शरण ए पडिवजे, वळी भजे भावना शुद्ध रे; 
दुरित सवि आपणा निंदिए, जीम होय संवर वृद्धि रे. ९ 
इहभव परभव आचर्चा, पाप अधिकरण मिथ्यात्व रे; 
जे जिनाशातनादिक घणां, निंदिए तेह गुणघात रे. १०



 गुरूतणां वचन जे अवगणी, गुंचिया आप मत जाल रे;
बहुपरे लोकोने भोळव्यां, निंदिए तेह जंजाल रे. ११ 
जेह हिंसा करी आकरी, जेह बोल्या मृषावाद रे; 
जेह परधन हरी हरखीयां, कीधलो काम उन्माद रे. १२
जेह धन धान्य मूछ धरी, सेविया चार कषाय रे; 
राग ने द्वेषने वश हुआ, जे कीयो कलह उपाय रे. १३ 
जूह जे आळ परने दिया, जे कर्या पिशुनता पाप रे; 
रति अरति निंद माया मृषा, वळीय मिथ्यात्व संताप रे. १४ 
पाप जे एहवा सेविचां, निंदिए तेह मिहुं काल रे; 
सुकृत अनुमोदना कीजीए, जिम होय कर्म विसराल रे. १५ 
विश्व उपकार जे जिन करे, सार जिन नाम संयोग रे; 
तेह गुण तास अनुमोदिए, पुण्य अनुबंध शुभयोग रे. १६ 
सिद्धनी सिद्धता कर्मना, क्षय थकी उपनी जेह रे; 
जेह आचार आचार्यनो, चरण वन सिंचवा मेह रे. १७  
जेह विझायनो गुण भलो, सूत्र सझाच परिणाम रे; 
साधुनी जेह वळी साधुता, मूळ उत्तर गुण धाम रे. १८ 
जेह विरति देशश्रावक तणी, जेह समकित सदाचार रे; 
समकित दृष्टि सुरनर तणो, तेह अनुमोदिए सार रे. १९ 
अन्यमां पण दयादिक गुणो, जेह जिनवचन अनुसार रे; 
सर्व ते चित्त अनुमोदिए, समकित बीज निरधार रे २० 



पाप नवि तीव्र भावे करे, जेहने नवि भव राग रे; 
उचित स्थिति जेह सेवे सदा, तेह अनुमोदवा लाग रे. २१ 
थोडलो पण गुण परतणो, सांभळी हर्ष मन आण रे; 
दोष लव पण निज देखतां, निर्गुण निजआतमां जाण रे. २२ 
उचित व्यवहार अवलंबने, एम करी स्थिर परिणाम रे; 
भाविये शुद्धनय भावना, पापनाशच तणुं ठाम रे. २३ 
देह मन वचन पुद्गल थकी, कर्मथी भिन्न तुज रूप रे; 
अक्षय अकलंक छे जीवनुं ज्ञान आनंद स्वरूप रे. २४ 
कर्मथी कल्पना ऊपजे, पवनथी जेम जलधि वेल रे; 
रूप प्रगटे सहज आपणुं देखतां दृष्टि स्थिर मेल रे. २५ 
धारतां धर्मनी धारणा, मारतां मोतवड चोर रे; 
ज्ञानरूचि वेल विस्तारता, वारतां कर्मनुं जोर रे. २६ 
राग विष दोष उतारतां, झारतां द्वेष रस शेष रे; 
पूर्व मुनि वचन संभारतां, वारतां कर्म निःशेष रे. २७ 
देखिये मार्ग शिव नगरनो, जे उदासीन परिणाम रे;
तेह अणछोडता चालीए, पामीए जिम परमधाम रे. २८ 
श्री नयविजय गर शिष्यनी शीखडी अमृत वेल रे; 
एह जे चतुर नार आदरे, ते लहे सुयश रंग रेल रे. २९ 
अमृतवेल (Hindi Lyrics) जैन सज्झाय
अमृतवेल (Hindi Lyrics) जैन सज्झाय

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