ईच्छा मने छे एज के तुज भावने वरतो रहूं,
तव दर्श पामी निर्मळु एक भावना मुज दिल वसी,
सविं जीव करुं शासनरसी... सवि जीव...
जो होवे मज शक्ति ईसी सविं जीव...१
अनंतमाथी आव्यो ने अनंतमा समातुं छे,
अनंत ए मुज स्वजनने शासन प्रीते रंगावं छे,
जीवो सहु तडपी रह्या कर्मा तणा फंदे फसी,
सविं जीव करुं शासनरसी, सवि जीव...२
शासन विना आ विश्वमा उद्धार कोईनो नथी,
शसन विना सिद्धभावमा स्वीकार कोईनो नथी,
शासन थकी अंनत जीवो तर्या ने तरशे हुजी,
सविं जीव कसं शासनस्सी, सविं जीव...३
शासन ताहणं हे प्रभु! मुज प्राण छे त्राण छे
मुज साधनामां तीक्ष्णताने अर्पतुं शराण छे,
शासन तणी उपकृत छबी विस्मित मुज नयने वसी,
सवि जीव करुं शासनरसी, सवि जीव...४
शासन ताहरू हे प्रभु! आ विश्वमांही अनन्य छे,
शासन सम उपकारकारी एक ना को अन्य छे,
कृतज्ञता भावे प्रभु! ए ऋण शासनतुं वरी,
सविं जीव करुं शासनरसी, सविं जीव...५
स्वच्छंदताने नाथवा शासन अवंध्य शस्त्र छे,
कामादि दोष निवारवा शासन अनुपम मंत्र छ,
करी साधना शासन थकी प्रतिसोतमां वहेवा धसी..
सविं जीव करूं शासनरसी, सविं जीव...६
शासन थकी सद्गुण तणां शुभस्पंदनो उछळी रह्या,
शासन थकी दुर्गुण तणां दुर्भावो सहु प्रजळी रह्या
आतमरतिथी जइरति तोडी सहु कर्मो कसी,
सवि जीव करूं शासनरसी, सवि जीव...७
शासन ताहरु हे प्रभु! आ विश्वमांही वरिष्ठ छे,
कलयाकंद ने विश्ववंद्य गुणो थकी गरिष्ठ छे,
शासन पामी ताहरु मुन भ्रांतिओ दूरे खसी,
सवि जीव करुं शासनरसी, सविं जीव...८
हर श्वास ने उच्छवास माँ शासन तणो धबकार छे,
मुज़ रोमे रोमे हरपळे शासन तणो रणकार छ,
सव सव प्राणी गण प्रति शुभ भावथी करुणा धरी,
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